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Showing posts from 2022

इंतज़ार

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   फिर वही हंसी ,  वही खुशियों की बौछार ले कर आना मैं दौड़ी चली आऊंगी शनिवार सी तुम भी फुर्सत से इतवार बन कर आना..... कुछ बातें,  कुछ मुलाकातें करनी है तुमसे , मैं आऊंगी दिन भर की थकन सी और तुम मेरी शाम की चाय सा प्यार बन कर आना...... सारे जहां से लड़ झगड़ के वक्त निकालकर इंतजार में छत पर बैठी रहूंगी तुम शाम की वही ठंडी फुहार बन कर आना......                     - Rabiya

महबस

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  हां ! मुझे घूमना फिरना पसंद है क्यों कि  घर से गली की सीमा मैने देखी है  कपड़ो के नाप तौल से परिवार की गरिमा मैंने देखी है  हां ! मुझे काम लोगों से नाते बनाने की आदत है  क्यों की  लडकों से बातें उफ्फ ! दामन पर दाग लगा देती है  और ये ज्यादा दोस्ती यारियां लड़कियों को बिगाड देती है  ये आग फैलती मैंने देखी है  हां कभी कभी मेरी तकलीफ चेहरे पर नज़र आ जाती है  क्यों की  मेरा बदन आग सा तपता है , हर  पल शरीर से खून रिसता है  दर्द होता है पैरों में , तो कभी दर्द से पेट कटता है  हर महीने के वो दिन और उनकी जद्दो जेहद मैंने देखी है  हां मुझे शादी ब्याह की बातों से डर लगता है  क्यों की  जिस कोख से पैदा हुई , जिन उंगलियों को थाम कर चलना सीखा  उनको एक पल में छोड़ने के ख्याल से  धड़कने रुकती और ये आंखें भरती मैंने देखी है                                          - Rabiya

इंशाल्लाह

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  फज्र की हर अज़ान सुन कर फर्ज़ नमाज़ तेरे साथ पढ़ना चाहती हूं। तहज्जुद की हर नमाज़ में तेरे दर्द को अपने आंसुओं में बयां करना चाहती हूं। और सलातुल- हाजत की वो खास नमाज़  उसमें तमाम उम्र सिर्फ तेरा साथ मांगना चाहती हूं। जब कभी इख्तियार करूं काले बुर्के का नायाब लिबास तो मेरे हर कदम पर सुफेद कुर्ते - पैजामे में तेरा साथ चाहती हूं.....

खज़ाना

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   तुम मेरे झुमकों के वो मोती हो जिसे  मैं अपनी लटो में छुपा कर रखना चाहती हूं।  मेरी नज़र का वो टीका हो जिसे का कान के पीछे लोगों की नज़र से बचाना चाहती हूंं।   मेरी आंखों का वो सुरमा हो हो जिसे  मैं पलकों के दरमियां सहेज कर रखना चाहती हूं।  मेरी हसली का वो तिल हो जिसे  मैं अपने दुपट्टों से ढंकना चाहती हूं । वो ना - हासिल लकीरें हो मेरी तकदीर की जिन्हें  मैं मुट्ठियों में बंद करना चाहती हूं।                                                        - Rabiya

नमी 🙂

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  उस शर्ट से आज भी तेरी खुशबू आती है  तेरे इत्र की महक तेरे होने का एहसास कराती है । और वो जो शॉल दिया था तूने  हुबहू तेरी बाहों की गर्माहट देता है  पर वो चूड़ियों का रंग , कुछ ज़रा फीका सा पड़ गया है । बालों को ढीला सा बांध कर  चेहरे पर लटोंं का आना अब नहीं पसंद मुझे । और हां लाल रंग की सुर्खी भी  होठों पर लगाना छोड़ दिया मैने । वो काले वाले झुमके , कानों से ज्यादा मेरे हाथों में रहते है  तेरी पसंद का हल्का सा सुरमा लगाना भी , अब आदत से हटा दिया मैंने  कैसे बताऊं तुझे ? किस क़दर इस दिल को पत्थर बना लिया मैंने ....                                        - rabiya