खज़ाना

  





तुम मेरे झुमकों के वो मोती हो जिसे

 मैं अपनी लटो में छुपा कर रखना चाहती हूं। 


मेरी नज़र का वो टीका हो जिसेका

कान के पीछे लोगों की नज़र से बचाना चाहती हूंं।

 

मेरी आंखों का वो सुरमा हो हो जिसे

 मैं पलकों के दरमियां सहेज कर रखना चाहती हूं। 


मेरी हसली का वो तिल हो जिसे

 मैं अपने दुपट्टों से ढंकना चाहती हूं ।


वो ना - हासिल लकीरें हो मेरी तकदीर की जिन्हें 

मैं मुट्ठियों में बंद करना चाहती हूं।


                                                       - Rabiya


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