अर्धनारीश्वर 🖤

 


जीवन का पहला खुबसूरत अध्याय सुंदर बालक सवरुप

थाली-ताली खुब गूंजी घर का कूलदीपक जो हुआ मजबूत

शृंगार की लाली अम्मा की भाई पिता का रुतबा फिका पडा़

लड़की सा चाल -चलन लड़कों सा होना ना जाने भूल गया

पूर्ण रूप से शारीरिकता मानसिक बल में है कोई ना कमजोरी

लोगों ने पागल कहा भूल गए में हूँ अर्धनारीश्वर की जोड़ी

समान की लहर थम गई बेज्जती की कालिख लहरों सी बढ़ी

घर का दामन भी छूटा उलटे पाव चलने की मजबूरी हुई

रास्ते कठिन थे मेरे क्यों भई लोगों के ताने ही तमाम उठे 

चुप करने की ताकत नही तो हसने के हजार बहाने ढूंढे

अब जिदंगी अपनी हुई अपनी शर्तों पर जीना खुद सिखा |


कमीज़ पतलून के रंग अडियल  छह मीटर  साड़ी से प्रसन्नता

केश का छोटा कद ना रहा अब गजरे से उसको बुनना शुरू हुआ

घड़ी की सुईयो को मैंने कंगन की छनकार सा ही सुना

माथे पर एक लाल बड़ी बिन्दी चहरे को मेरे निखार दे

इन अभिलाषो से मैंने अपनी छवि को आकार प्रकार दिया  

कुछ को रास ना आया कुछ ने मुझे पूजना प्रारंभ किया

गालियाँ तो थी ही अब आशिर्वाद दे सकूँ ऐसी रीति बनी

अर्ध नारी एवं ईश्वर को मैंने खुद में धारन समस्त किया

परिभाषा ओरो के लिए तुच्छ पर शिव का एक जाना रुप

पहले का जमाना घबराहट का हुआ था अब तो विख्यात है

आज भी कई मेरी तरह परेशान है पर हौसला अब टूटने का ना नाम है ........ 

लडकों का शरीर लड़की की बोली ना  जाने क्यों ना उन्हें रचती

पर क्या कभी उनके दिलों में बातें ना जगती क्या ये है मेरी गलती |





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