वास्तविकता🤗🧐


 ये भीनी भोर धुंध 
सावरिया की दमक
परछाई से खेल रही 
वास्तविक प्रमाण है
कुछ मेरी उड़ानों का
भवर में मैं घुम रही
वक्त सतह पर आने का
वैतरिणा सी बावरी मैं
जिजीविषा का प्याला हूँ
झंकार सुन कर भी
एक बंद ऊजला रहूँ
तनक का जोर अब
पराक्रम बनता रहे मेरा
छांव से हो रही दुश्मनी
उजाले से ही है सवेरा
हिज़र का दु:ख अब
नक्श ना बया करेगें
ताही-दस्त थी अब तक
हमसाया मेरा साया रहेगें
हुंकार, आवेग अस्त्र नही
ठोकरें आजकल ढ़ाल है
काटों पर चलने की आदत
फूलों से मुझे मलाल है
ऊबाल है बहुत जरुरी
बेख्याल करना है तो
हृदय बस रोगी बनाएंगा
दिमाग से हमें चलना है
मरम्मत से नही होगा
सवालों के उपाय चाहिए
बदलते रहेगें हरदम लोग
परिवार ही हमेशा अपना है
आकार आकाश का नही
पर इतना तो फैल ही जा
ढूंढना चाहे भी तो कोई
विशालता से घबरा जाए
नाव के होतें है दो किनारे
पर किनारे का अंदाज़ा नहीं
लडखडाऊं तो अच्छा है
संभलना तो बेगैरत बना
कांच जो टूटा हो कभी
तो फिर कहाँ जुड़ा..... 




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