या-अबरनी 👻👻
मोहब्बत से नफरत नही है मुझे
मोहब्बत करने वाले से नफरत हो रखीं है |
आज भी कोई मोहब्बत का नाम ले तो
सूरत मुझे उस ही कि याद हो गई है |
जान-ए-अदा थे हूर कहानियों की हमारे
राजे-ए-दिल को शिकस्त कर नसीम बना गए हैं |
अकेले ही रह गए हम खुद इतना खुद में
कि अपना शिखर तेरे आगे झुका पड़े है |
सवालों की रंजिश यु बुनि है तूने
नवाजिश मेरी परदनुमा कही खो गई |
शायद जबरन कतरा- कतरा जोडा था मैंने
लिहाज की सीमा काफिला हमारा पार कर गई |
इस बेजान नफस का तदबीर तो बता
आखिरी पल जियु या खो जाने का रास्ता चुनूँ |
आशना, दिवानगी जैसे सारे फसाने थे
नींद ऐसी टूटी की तबयत खैरियत हो गई |
रिंद बना बैठा था तेरी चाहत का यूँ
पर तब भी पाक इरादा हुआ करता था मेरा |
ऐब था मुझे की सिर्फ मैं तेरी हूँ और रहूँगी
काश बताया होता कि तू मेरा जहाँ बन गया |
कही अंदर आस के किनारे अभी भी है
पर यास तो बस खाख-खार के लिए बनी हैं |
मेरे दहर का मेहर-ओ-मह यूँ करीने सा था तू
रैना तो बस अलफ़ाजो को तर्ज़ दिया करती थी |
तेरा छूना जैसे कल कि ही बात हो अब नुकसान
जो हुआ बस इसका अफसोस बहुत हुआ है |
कैफियत मेरी भला क्या दिल दुखेगी तेरा
तक्काबुर हूं ना तो औकात का परिणाम समझ गया |
जुस्तजू मेरी रफ्तार से ना ऐसे ही मापन
शिदत से यादों मे बस अब फना हो गई हूँ |
लापरवाह थी तो आज उसका अनजाम भुगत रही
उदासी के अलावा और कुछ भी ना रखा है |
जाने-ए-गज़ल अगर बना लूं तुझे तो
बदनाम तो ना सारे जहाँ में तू हो जाएगा |
अब आखिरी रूख इस जान का या-अबरनी कर दो यहाँ से मुझे,पर तेरा इंतजार यू ही वहाँ भी कोई कर रहा होगा |
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