हस्ती💜💙

 


 बैठ मेरे ज़रा करीब तेरी हस्ती लिख रहा हूँ ,कल तक तेरे पास होते हुए भी आंखें मुंदी हुए थी, आज तुझे रफिक़ लिख रहा हूँ |

गले में हार नहीं, बाहों में बाहें डाली थी मैंने, मृगतृष्णा सी मेरे लिए वो मतवाली बातें थी |

हथेली हूँ मैं पर हथेलियां मेरी तुझे ढूंढती है, बस लगता है जैसे आज भी कोई स्पर्श छुपके से मेरा  लेती है | 

तेरी तस्वीरों की खदानें, मेरे लिए दुनिया से बेगानी बनी, रुपरेखा तेरे लिए आम होगी, पर मेरे जी को छूने वाली सजी |

तू कभी कुछ कह ना सका, जाना तेरा सब बोल गया, मैं चीखी- चिल्लाई, पर ओरो से तूने भी मुंह मुझसे फेर लिया |

लब्ज़ तेरे ही पाक थे, नियत का खुला परचा था, एक दिन बनाने के लिए, पूरे साल को दिया तूने बेहीसाब  खर्चा था |

जादूगर था वक्त का तू, या मेरे वक्त को तेरी आदत थी, समय से पहले ये निगाहें, घड़ी की टिक-टिक पर टिक जाती थी |

दूसरों के लिए अजीब, पर मुझे लगता प्यार था, ना जाने क्या देखा मैंने उसमें, जो दूसरों को तुझे में ना दिख पाता था | 

उसके अधूरे किस्सों की अनजानी हिस्सेदार रही हूँ, आंखें भरी रहती थीउसकी, मैं देखती हर बार उसको रही हूँ |

लोगों का जमघट रहता, बड़ी यारी- दिलदारी थी, फिर भी अकेला महसूस करता, जाने क्या ही उसकी खुद से साझेदारी थी |

परेशानियों का ताज लिए फिरता है, समय पर सोने की हमेशा त्यारी थी, वक्त आए तो जैसे उसकी किस्मत हारी थी |

लिखना तेरे लिए अच्छा है, पर आदत मेरी खराब हो रही, भूलना था तुझे, पर याद कर अब वक्त से मेरी यारी हो रही............... |




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