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Showing posts from January, 2022

खज़ाना

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   तुम मेरे झुमकों के वो मोती हो जिसे  मैं अपनी लटो में छुपा कर रखना चाहती हूं।  मेरी नज़र का वो टीका हो जिसे का कान के पीछे लोगों की नज़र से बचाना चाहती हूंं।   मेरी आंखों का वो सुरमा हो हो जिसे  मैं पलकों के दरमियां सहेज कर रखना चाहती हूं।  मेरी हसली का वो तिल हो जिसे  मैं अपने दुपट्टों से ढंकना चाहती हूं । वो ना - हासिल लकीरें हो मेरी तकदीर की जिन्हें  मैं मुट्ठियों में बंद करना चाहती हूं।                                                        - Rabiya

नमी 🙂

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  उस शर्ट से आज भी तेरी खुशबू आती है  तेरे इत्र की महक तेरे होने का एहसास कराती है । और वो जो शॉल दिया था तूने  हुबहू तेरी बाहों की गर्माहट देता है  पर वो चूड़ियों का रंग , कुछ ज़रा फीका सा पड़ गया है । बालों को ढीला सा बांध कर  चेहरे पर लटोंं का आना अब नहीं पसंद मुझे । और हां लाल रंग की सुर्खी भी  होठों पर लगाना छोड़ दिया मैने । वो काले वाले झुमके , कानों से ज्यादा मेरे हाथों में रहते है  तेरी पसंद का हल्का सा सुरमा लगाना भी , अब आदत से हटा दिया मैंने  कैसे बताऊं तुझे ? किस क़दर इस दिल को पत्थर बना लिया मैंने ....                                        - rabiya