मेरे भी सपनों का आसमां था जो आकर ज़मीन पर बिखर गया , मत पूछो ! इतने टुकड़े हुए कि हर कदम सौ - सौ घाव देता गया.... जिन रास्तों पर अरमान सजाए थे वहां ना ख़ुशी मिली , ना हंसी बस बचा - कुचा सा हौसला था वो भी धीरे - धीरे दम तोड़ गया... इस वक़्त ने ऐसा जकड़ लिया कि ना जी सके , ना भाग सके ख़ुद में सिमट कर रह गए और बस दम घुटता गया.....
संग -ए- मरमर से तराशा हुआ ये शोख़ बदन इतना दिलकश है कि अपनाने को जी चाहता है। सुर्ख होठों से छलकती है वो रंगीन शराब जिसको पी-पी कर बहक जाने को जी चाहता है। नरम सीने में धड़कते है वो नाज़ुक तूफान जिनकी लहरों में उतर जाने को जी चाहता है। नूर ही नूर छलकता है हंसी चेहरे से बस यहीं सजदे में गिर जाने को जी चाहता है। अपने हाथों से सवांरा है तुम्हें कुदरत ने देख कर देखते रह जाने को जी चाहता है। कब से ख़ामोश हो ऐ जान- ए - जहां कुछ बोलो भी , क्या और सितम ढाने को जी चाहता है? तुमसे क्या रिश्ता है कब से है मालूम नहीं लेकिन इस हुस्न पे मर जाने को जी चाहता है। बेकरार सोये है लूट के नींद मेरी जज़्बे दिल पे तरस खाने को जी चाहता है। चांद की हसती है क्या सामने जब सूरज हो आपके कदमों में मिट जाने को जी चाहता है। मेरे दामन को कोई और ना छू पाएगा तुमको छू कर ये कसम खाने को जी चाहता है। छोड़ के तुमको कहाँ चैन मिलेगा हमको यहीं जीने, यहीं मर जाने को जी चाहता है। ...
❤❤❤❤
ReplyDeleteSo sweet..😍😍
ReplyDeleteThank u so much
DeleteVery nice keep it up
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