जीवन का पहला खुबसूरत अध्याय सुंदर बालक सवरुप थाली-ताली खुब गूंजी घर का कूलदीपक जो हुआ मजबूत शृंगार की लाली अम्मा की भाई पिता का रुतबा फिका पडा़ लड़की सा चाल -चलन लड़कों सा होना ना जाने भूल गया पूर्ण रूप से शारीरिकता मानसिक बल में है कोई ना कमजोरी लोगों ने पागल कहा भूल गए में हूँ अर्धनारीश्वर की जोड़ी समान की लहर थम गई बेज्जती की कालिख लहरों सी बढ़ी घर का दामन भी छूटा उलटे पाव चलने की मजबूरी हुई रास्ते कठिन थे मेरे क्यों भई लोगों के ताने ही तमाम उठे चुप करने की ताकत नही तो हसने के हजार बहाने ढूंढे अब जिदंगी अपनी हुई अपनी शर्तों पर जीना खुद सिखा | कमीज़ पतलून के रंग अडियल छह मीटर साड़ी से प्रसन्नता केश का छोटा कद ना रहा अब गजरे से उसको बुनना शुरू हुआ घड़ी की सुईयो को मैंने कंगन की छनकार सा ही सुना माथे पर एक लाल बड़ी बिन्दी चहरे को मेरे निखार दे इन अभिलाषो से मैंने अपनी छवि को आकार प्रकार दिया कुछ को रास ना आया कुछ ने मुझे पूजना प्रारंभ किया गालियाँ तो थी ही अब आशिर्वाद दे सकूँ ऐसी रीति बनी अर्ध नारी एवं ईश्वर को मैंने खुद में धारन समस्त किया परिभाषा ओ...
मेरे भी सपनों का आसमां था जो आकर ज़मीन पर बिखर गया , मत पूछो ! इतने टुकड़े हुए कि हर कदम सौ - सौ घाव देता गया.... जिन रास्तों पर अरमान सजाए थे वहां ना ख़ुशी मिली , ना हंसी बस बचा - कुचा सा हौसला था वो भी धीरे - धीरे दम तोड़ गया... इस वक़्त ने ऐसा जकड़ लिया कि ना जी सके , ना भाग सके ख़ुद में सिमट कर रह गए और बस दम घुटता गया.....
❤❤❤❤
ReplyDeleteSo sweet..😍😍
ReplyDeleteThank u so much
DeleteVery nice keep it up
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