फुर्क़त 🥺🥺


 

क़ासिद मेरा पेगाम ले जा

तबाही, तोहमत, तशरीह नहीं, 

बस कोरा कागज़ उसके नाम ले जा |

सुकून नहीं तो क्या हुआ, 

बस दोस्ती का फरमान ले जा |

तुझसे महरूम रह कर भी तेरी थी, 

पर वक्त को हो रही शायद ज़रा देरी थी |

मैं खुद में इतना खो गई कि , 

तेरी भी हु में इस मोह से बाहर हो गई |

गलतियों के किस्से मेरे हजार है, 

पर तूने मुझे माफ किया हर बार है |

कोई कुचा ना रहा मेरा सबुत, 

विश्वास था ना कोई झूठ |

शिकायतें बिलकुल नही है तुझसे, 

पर दिल में गुस्सा भरा तमाम है |


आज हुआ तू पूरा अनजान, 

कल तक तेरे होने से था अभिमान|

दुरियोँ ने तो फिर भी समझोता किया , 

पता नहीं मैंने ही क्यों कुछ ना किया |

जितनी खुशी से जीवन का हिस्सा बना, 

खौफ का आईना तुने मुझमें उतना ही पाया|

वक्त से हमेशा मेरी कोई लडाई रही , 

जो चीज  मुझे पसंद आई मेरी कभी न बनी|

अब खुश रहूँ या दुखी कशमकश है , 

कसमें हजार जो टूटी इसका तो गम है|

खयालों की दुनिया हमारी बून रही थीं, 

खुबसूरती से चीजे चुन रही थी| 

इख़्तियाम नहीं आगाज़ हुआ है, 

मेरा अकेलापन आज मुझसे रुबरु हुआ है|

मुसलसल ये कहानी चली है , 

मुख्तार है इतनी याद मुझे हो गई है|


निशानी तो नहीं है मेरे पास, 

पर निशा होते ही निशाना ढूढती हूँ |

आंखें बस यू ही खुली कर , 

दर्द की कडिया जोड़ रही हूँ |

बेपरवाह हो जाऊँ या इंतजार करूँ, 

दिल की सुनू  या दिमाग से विचार करूँ |

आज भी नेक बंदा है तू मेरे लिए, 

मैं बोलने की सारी हदें पार कर चुकी हूँ |

बड़े किमती हो जनाब आप, 

ना जाने किस से एतबार करोगे |

मेरे तो न हुए तो क्या हुआ , 

जिंदगी लबी है किसी से तो प्यार करोगे|

तू खुश रहे मेरी यही आरजू है, 

तेरी खुशी को अपनाना बीमारी सी मुझे हुई है|

हालात ऐसे हुए बातें ख्तम हो चुकी है, 

तू फुर्क़त हुआ तो मेरी तबयत नम हो गई है........ 






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