मजदूर👷‍♀👷




बेघर बना मारा- मारा
सडको पर मैं पैदल बेचारा
सिफर जिंदगी का ही तो था सहारा
वक्त ने बना दिया आज मुझे भी अवारा।


मैं इस देश का निर्माण कर्ता 
झुग्गी झोपड़ि मेंरा निवास
पैसो से मैं वंचित रहता
फिर भी खुश रहने में मैं करता विश्वास।


मेरे सपने कुछ खास नही
अब तो इस जिंदगी से भी आस नहीं।


गलने लगा है ये पुतला हाड़ मास का
भुख से नाता हो गया है आस पास का
आज महामारी भी मुझ से रूठी है
क्योंकि मेरी जिंदगी का सत्य मजदूरी है।


रीड की हड्डी सा काम मेरा
नाम तो छोडो यहा मैं बदनाम जरा
मेरी शाम जामो में नहीं
दामों का हिसाब लगती है।


मेरी विवशता आज लोगों के घरों में मशहूर है
जी हां क्योंकि मैं एक मजदूर है।


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