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Showing posts from February, 2020

मुकम्मल अधूरा इश्क़😇❤

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बेइंतहा तन्हाई में कुछ खोजते से रहते हैं भीड़ में हर घड़ी खोए से रहते हैं कुछ ना होने के बावजूद जी रहे हैं, यही बहुत है .... मांग लेता आंखों के मोती को कोई तो देने में ग़म ना होता, पर आंखों से उसे छीना इस कदर कि इनमें अब नमी ही बहुत है.... धीरे से छीन गया सब कुछ ये एहसास ही आज हुआ अब तो ना तारे अपने और ना ये चांद बस हर पहर एक सूरज की धूप ही जलाती है जो बचा है उसे भी अपना सा बताती है छांव में गर आ भी पहुंचे तो जिंदगी ने बताया हमारे पास तो कमी ही बहुत है....

एक लम्हा खुशी का 😊

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मन में कुछ लहरें दैड़ उठी है होठों पर प्यारी सी हंसी कूद पड़ी है दिल की धड़कनें इतनी ज़ोर से चल रही हैं पूछा तो कहती है खुदा का शुक्रिया करने चल पड़ी है... हर रोम- रोम खुशी से भरा है इतने सूखे मौसम में भी, मन में सब हरा- भरा है बालो को उड़ाती हवाएँ बहुत तेज़ है पूछा तो कहती है किसी से बातें करने चल पड़ी है.. आंखों में चमक भी तारों से ज्यादा है सांसो में ठंडक भी हवाओं से ज्यादा है चांद की चांदनी भी बादलों  के पीछे छुपी जा रही है पूछा तो कहती है किसी को सताने चल पड़ी है... चेहरे को छूती ये फिजाएं मनचली है आंखों से काजल चुराने बहारें चली है रूखसारों पर मुस्कुराहट रुकती ही नहीं पूछा तो कहती है किसी को हंसाने चल पड़ी है...

जी चाहता है... 🤩

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संग -ए- मरमर से तराशा हुआ ये शोख़ बदन इतना दिलकश है कि अपनाने को जी चाहता है। सुर्ख होठों से छलकती है वो रंगीन शराब जिसको पी-पी कर बहक जाने को जी चाहता है। नरम सीने में धड़कते है वो नाज़ुक तूफान जिनकी लहरों में उतर जाने को जी चाहता है। नूर ही नूर छलकता है हंसी चेहरे से  बस यहीं सजदे में गिर जाने को जी चाहता है। अपने हाथों से सवांरा है तुम्हें कुदरत ने देख कर देखते रह जाने को जी चाहता है। कब से ख़ामोश हो ऐ जान- ए - जहां कुछ बोलो भी , क्या और सितम ढाने को जी चाहता  है? तुमसे क्या रिश्ता है कब से है मालूम नहीं लेकिन इस हुस्न पे मर जाने को जी चाहता है। बेकरार  सोये है लूट के नींद  मेरी जज़्बे दिल पे तरस खाने को जी चाहता है। चांद की हसती है क्या सामने जब सूरज हो आपके कदमों में मिट जाने को जी चाहता है। मेरे दामन को कोई और ना छू पाएगा तुमको छू कर ये कसम खाने को जी चाहता है। छोड़ के तुमको कहाँ चैन मिलेगा हमको यहीं जीने, यहीं मर जाने को जी चाहता है।                                                          -  BABA

कोई नहीं है.. 😌

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जिंदगी में कुछ कमी नहीं है, पर ये मुकम्मल भी तो नहीं है, दिन भर सबके साथ चलती हूँ , खूब हंसती हूँ पर रातों को जब रोती हूँ तो कंधा देने वाला कोई नहीं है.... कोई अच्छा कहता है, तो कोई बुरा भी बस हर बात पे मुस्कुरा देती हूँ मेरी हंसी की तारीफ करने वालों की कमी नहीं है पर उसके पीछे का दर्द समझने वाला कोई नहीं है.. कोई अपनी सुनाता है तो सुन लेती हूँ कोई पास बैठता है तो बात कर लेती हूँ मेरी ज़ुबान का मीठा ये झूठ पसंद करने वाले तो हैैं पर मेरी आँखों का सच देखने वाला कोई नहीं है.... मेरे रस्ते भी अंजान से हो गए हैं हर शख्स अजनबी सा लगता है फिर भी कोई चंद मील साथ चलता है, तो उसका दर्द बांट लेती हूँ ये चार कदम साथ चलने वाले बेशुमार हैं पर हाथ थाम कर उम्र भर मेरे साथ चलने वाला कोई नहीं है....

चंद जज़्बात

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-"ताबीर करूँ कुछ इस कदर तुम्हारी शमा - सी मेरी जिंदगी में लाते हो औरों से नहीं हो तुम , मेरे कल्ब को छू जाते हो पाक दामन तुम्हारा ऐसा, कि मेरे ज़ेहन में  नूर भर जाते हो ।" -"चली थी जिन रस्तों पे ऐ रहबर तेरे साथ अब वहाँ तू न सही पर तेरी मुश्क से निस्बत सी है तेरी यादों से इतनी कुर्बत है  कि अब सिफर सी मेरी जिंदगी हो चली है। "

अधूरा अफसाना.... 🤗

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राहिल तेरे इश्क की उन गलियों से गुजराती हूँ तेरी इक झलक जो दिख जाए अहल- ए- शौक़ मैं खुद को तेरा समझती हूँ। अकीदा  कर मेरा तू फिक्र मुझे तेरी भी होती है बस अलफ़ाजो के तकाजे़ से मेरी मोहब्बत सुपुर्द -ए - ख़ाक होती है। मेरी चाहत कुछ इस कदर निस्फ सी रह गयी कि मेरा अहद भी टूट गया और मैं खुद से ना-मालूम सी रह गयी।

एक तरफा 🙂

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आज कल बेख्याली में मुस्कुरा के चलते हैं अक्सर तुझसे पलकें झुका के मिलतें है इसमें कुछ तो तेरे नूरानी चहरे का ख़ुमार है                           और कुछ हम भी ख़ुद को खोने को तैयार हैं.... तन्हाई में कुछ तो गुनगुनाते रहते हैं तुझे इक पल देखते ही शरमा के खुद में सिमट जाते हैं इसमें कुछ तो तेरी नजरों की ग़ुस्ताख़ी है                         और कुछ हम भी ग़ुस्ताख़ हैं..... तेरी मुस्कुराहटों की सलवटों से आखें भी खिल जाती है तेरे होने के अहसास से दिल की धड़कने भी बढ़ जाती है इसमें कुछ तो तेरी अदाओं का नशा है                      और कुछ हम भी मदहोश होने को बेकारार है.... तेरी ज़ुल्फ़े काली घटा से भी ज्यादा कातिल लगती है तेरे जिस्म की खुशबू इत्र से ज़्यादा महकती है इसमें कुछ तो तेरी बातों का जादू है                       और कुछ हमारे भी बिगड़ने के आसार हैं..... 

पहली मोहब्बत❤

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उन्स है मुझे उस शख्स के लिए इज़तिरार सी हो जाती हूँ मेरा अक्स सा लगता है तू मुझे रफिक़ तुझे अपना बनाना चाहती हूँ। बरख़ पर लिख दूँ तुझे मेरी स्याही ब-दस्तूर कहती है फ़ानी सा नाम है तेरा हिकायत सी मुझे याद रहती है। महदूद  नहीं बेशुमार चाहती हूँ फिलहाल कुछ छुपे से जज़्बात  मेरे कभी चाहो तो खुल कर बतलाती हूँ उज़ृ नहीं फरमाऊंगी, अपनी चाहत का मुक्मल वो अफसाना तुमको हूबहू  बतलाऊंगी।