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Showing posts from 2021

आस

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  हर रात मेरे रुमालों में तेरी खुशबू लेकर सो जाती हूं  यूं ही हर रोज़ तेरे आने की आस से खुश हो जाती हूं... तेरी कही हर बात का ऐतबार कर लेती हूं  एक अनदेखी सी दुनिया और उस दुनिया में  अपना घर सजा लेती हूं... मेरी हर सांस में तेरा ही ज़िक्र रखना चाहती हूं इस दुनिया से आखिरत की दुनिया तक  सिर्फ तुझे ही कुबूल करना चाहती हूं....                                        -rabiya

काख़🍁🍂

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ख़ाक हुआ सपनों का काख़ शिद्दत,रग़बत से अड्डा था जो डगमगाया एक भी हिस्सा फ़िगार का एहसास हर पल नया था निगाहें- शौक का दो पल मेहमान मशिय्यत नही जुस्तजु थी मेरी तवंगर में उस वक्त और आज भी नहीं पर खवाबों से दोस्ती हुआ करती थी मेरी पुरानी रिवायतें अंजुमन के सहारे मैं नई दौर कि हुई पहेली थी खुद में ही खुद से इतना उलझ गई कि अब सुलझाने कि बस देरी थी सहारे से बेसहारा ठीक ही है उम्मीद का दरवाजा बंद ही रहता है खिड़कियां खुल भी क्यों ना जाए तो दायरा कुछ फासलों का ही रहता है |  

कुछ बाकी है 💟

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  कुछ गुलाबों कि किस्मत में बंद किताबों का ही स्पर्श है किसी के दिल को लुभाना नही यादों को ना दफनाने का फर्ज है जब थी कभी तो खिली हुई आज टूटा हुआ हर एक तर्ज है मैं कही वो ना जाने है कही  वर्तमान का बस यही सच है उम्मीद नही है तो सुकून है रास्ते निकल आते कही तो  दिवारें गिराना जरुरी पड़ता आगे बढने से डरती नही हूँ पर पीछे मुड़ ना है कमजोरी वफ़ा को रास ना आए गलती मेरी अकेली हूँ पर ना बिखरी ही हूँ जीना सबको है तो जी रही हूँ |

जरूरत खुशी कि हैं😁😇

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  ये झूठी शक्लें मासुमियत कैद किए है मनसुब इरादे  तेरा रखना ठीक ही है वरना इरादे तेरे झलक जाएगे दरमियान तो दिल जोडना मुश्किल मालूम पड़ेगा हजारों सवाल पूछ ले तुझे मंजूरी है पर एक सवाल का हिसाब ना रखना कैसी हूँ मैं आजकल यह पूछ कर  मुझे फिर कही तू नराज़ ना कभी करना वक्त है आज नही तो कल बीत जाएगा काश शुरू में ही बयां किया होता सब कि इतनी जल्दी तू मेरे जहाँ से चला जाएगा बंद ताले सा लिया दिल लिए फिर रही चाभी कि तलाश भी नही है मुझे अब कयोकि हसीन बातें अंदर ही अंदर निगल रही जरूरत अब तेरी नहीं मुझे मेरी खुद कि है  जो कही खो गई थी उसे ढूंढना बेहद जरूरी है मैं देखती हूँ, हसती हूँ, खिलखिलाती भी हूँ दूसरों से दिल में जख्म भरा छुपाया करती हूँ सच मैं पहले बेझिझक कह दिया करती थी  अब झूठ का सहारा लिया जीना चाहती हूँ...... 

पिता 👨👴

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 ये पिता की बात आतें ही जुबान पर सारे किस्से कहानियाँ कम पड़ जातें है | दिल में तमाम खजाना भर रखा है लेकिन सिहाई की पकड़ ना आ पाती है | माँ ने जन्म दिया तो उसका अधिकार लेकिन गोद पहले पिता की ही मिली थी | उन हाथों की एक आधी ऊंगली ही पुरा बचपन मैं निडर थामे चली थी | खडी़ होकर कई बार गिरी चोटें लगी लेकिन संभाला मुझे मुसकुरा कर हर बार हैं | ऐसा नही कि उन्हें किसी बात का दुख नही लेकिन मेरे ऊपर भावनाऐं करते व्यक्त नही | घोड़ा गाड़ी बने मुझे चाव से खिलाया लेकिन लड़की बोझ है ये महसूस ना कराया | पिता का बीता समय बड़ा कठिन भया था अपने बल बुते पर उन्होंने पुरा जहाँ बुना था | हमारी ख्वाहिशें कभी कम ना होती थी लेकिन ना कि आवाज कभी ना सुनाई | ये सच है कि माँ की फिकर बहुत है मुझे लेकिन पिता से प्रेम जिदंगी से भी ज्यादा है | उनकी मेहनत की कोई भी बोली नही लेकिन तमाम सहारों से नमुना देखती हूँ | खुशियाँ मेरे दामन में जो आज बह रही वो भला कभी कहा मुफ्त में कहीं बिकती है | मुझे पिता ही नही बल्कि एक गुरु भी मिला दूसरों की जरूरत नही मेरे दोस्त आप सा भला | आप जैसे आगर एक प्रतिशत भी बन जाऊँ तो जीवन सार्थक म

अर्धनारीश्वर 🖤

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  जीवन का पहला खुबसूरत अध्याय सुंदर बालक सवरुप थाली-ताली खुब गूंजी घर का कूलदीपक जो हुआ मजबूत शृंगार की लाली अम्मा की भाई पिता का रुतबा फिका पडा़ लड़की सा चाल -चलन लड़कों सा होना ना जाने भूल गया पूर्ण रूप से शारीरिकता मानसिक बल में है कोई ना कमजोरी लोगों ने पागल कहा भूल गए में हूँ अर्धनारीश्वर की जोड़ी समान की लहर थम गई बेज्जती की कालिख लहरों सी बढ़ी घर का दामन भी छूटा उलटे पाव चलने की मजबूरी हुई रास्ते कठिन थे मेरे क्यों भई लोगों के ताने ही तमाम उठे  चुप करने की ताकत नही तो हसने के हजार बहाने ढूंढे अब जिदंगी अपनी हुई अपनी शर्तों पर जीना खुद सिखा | कमीज़ पतलून के रंग अडियल  छह मीटर  साड़ी से प्रसन्नता केश का छोटा कद ना रहा अब गजरे से उसको बुनना शुरू हुआ घड़ी की सुईयो को मैंने कंगन की छनकार सा ही सुना माथे पर एक लाल बड़ी बिन्दी चहरे को मेरे निखार दे इन अभिलाषो से मैंने अपनी छवि को आकार प्रकार दिया   कुछ को रास ना आया कुछ ने मुझे पूजना प्रारंभ किया गालियाँ तो थी ही अब आशिर्वाद दे सकूँ ऐसी रीति बनी अर्ध नारी एवं ईश्वर को मैंने खुद में धारन समस्त किया परिभाषा ओरो के लिए तुच्छ पर शिव का एक

वजह🍁🍂

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  वजह तेरे लौटने की खत्म खाफी दूर चला गया है ना खुशी नहीं थी ये दिक्कत थी मैं जी रही ये तकलीफ बनी संग्रह सहज मन को घिचे डोरे नाजुक भ्रम ठीक है निश्चित है बीती कहानियाँ कई बिखरे किस्से तमाम तमाम भरे मैं घिरी हूँ बेडिया खोलती हुए अपने हिस्से की खुशी ठठोलती अब वैसा हमारे बीच बंधन नही पहले जैसा जीने के लिए दुबारा जीने जैसे यहाँ कुछ भी नहीं पलकें अभी भी झपकी ना अशको का संभलना ही देखुँ पर अभी भी कैद करना चाहूँ अकेले में इन्हें खुद ही पोछ लूं.... 

वास्तविकता🤗🧐

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 ये भीनी भोर धुंध  सावरिया की दमक परछाई से खेल रही  वास्तविक प्रमाण है कुछ मेरी उड़ानों का भवर में मैं घुम रही वक्त सतह पर आने का वैतरिणा सी बावरी मैं जिजीविषा का प्याला हूँ झंकार सुन कर भी एक बंद ऊजला रहूँ तनक का जोर अब पराक्रम बनता रहे मेरा छांव से हो रही दुश्मनी उजाले से ही है सवेरा हिज़र का दु:ख अब नक्श ना बया करेगें ताही-दस्त थी अब तक हमसाया मेरा साया रहेगें हुंकार, आवेग अस्त्र नही ठोकरें आजकल ढ़ाल है काटों पर चलने की आदत फूलों से मुझे मलाल है ऊबाल है बहुत जरुरी बेख्याल करना है तो हृदय बस रोगी बनाएंगा दिमाग से हमें चलना है मरम्मत से नही होगा सवालों के उपाय चाहिए बदलते रहेगें हरदम लोग परिवार ही हमेशा अपना है आकार आकाश का नही पर इतना तो फैल ही जा ढूंढना चाहे भी तो कोई विशालता से घबरा जाए नाव के होतें है दो किनारे पर किनारे का अंदाज़ा नहीं लडखडाऊं तो अच्छा है संभलना तो बेगैरत बना कांच जो टूटा हो कभी तो फिर कहाँ जुड़ा..... 

सच्चा शर्गिद 👮‍♀️👮

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  शहिद नही ये सारे लोग शागिर्द है वतन के कई लिपटें तिरंगे में पर आज भी है वतन के कोई माँ का लाडला तो कोई पिता का बुढ़ापा था पर उससे भी ज्यादा वो हमारे देश का रखवाला था सीमा पर तैनात ना धूप ना गर्मी का होता है एहसास चटानों में खड़े है जैसे चटान बन कर सारे फौलाद जीवन की सीमा है नहीं बस वो तो जीना जानते है अपनों को भूलाकर खुशी से सीना भी तानते है वर्दी की लाज ना आए उस पर कभी भी कोई दाग़ खून के धब्बे धोकर आंखों में जवाला भरते है बरबादी का मंजर देखा पर हमेशा अबाद रहेगे किन्ही किताबों में ही नहीं हमारे दिलों में राज करेंगे आज भी सोचों तो आंखों में समंदर भर आता है किसी बंजर भूमि पर गिरा एक शव नजर आता है धरती माँ की लाज बचाने और ऊंची रखने वालो को माटी भी स्नेह भरी चादर लाल को ऊढाती है जय हिन्द दिलोजान से आखिर में बोलकर  फर्क से मरना ही हमारे जवानों की भाती है घरों में हम सुरक्षित रहे इसलिए घर छोड़ते है गेरो की वफ़ा के लिए अपनी गृहस्थी भी तोडते है काम हमारा तो बस यही है, सलामी ही नही बल्कि उनको अपनी यादों में जिंदा हमेशा रखे इस देश के लिए अगर कभी सर भी कट जाए  तो बेझिझक मरने के खौफ को भूलकर द

फासले 👦.....👧

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  अब डर कर रहना पडेगा आपसे आपकी कीमत जो बढ़ गई है हम तो अभी भी है शून्य पर आपने कुछ सिढीया चढ़ ली है हालात मेरी हालतों को गवारा है खुश रहे हम-तुम बस यही सहारा है तू मजबूर नही था मेरे लिए कभी पर तेरी मैं अचानक मजबूरी बन गई सुकून भरा कायनात हुआ करती थी अब मेरी ज़रा भी तुझको जरूरत नही तेरे खास दिन का हिस्सा नहीं बन पाई रोती-बिलकती दे रही हूँ खुद को दुहाई कोशिशें ही मेरी हरदम कम रही होगी पर तकलीफें मैंने तमाम है सबको दी तू आदमी बहुत ही ज्यादा शरीफ है मैं ही बेशर्म हमेशा से रही होगी........ 

कूदरत से किस्मत 🤩🥺

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  देने वाले की कुदरत है किस्मत कम है हमारी फिर भी दिल बड़ा लिए फिर रहे ऐसी है दिलदारी पल में तोला पल में माशा क्या ही होता है जनाब हम तो आज भी जी रहे बादशाह सी साझेदारी टूट कर कई हजारों बार हम  तो युही जुड़े हैं फिर  भी दिल जोड़ने से विपरीत रस्ते हरदम ढूंढ लेते है मोहब्बत है हुज़ूर रास्ते का कोई तमाशा नहीं  जिंदगी अकेले जीने की हसरतों में अभिलाषा नही दिल में सुराख़ कर काला दाग़ हम पर लगा गया मिटाने की हसरत थी पर खुद पर तरस दिला गया अब भाषण कम कर ख्याल रखना सिख रही हूँ धागा जो टूटा उसे रिश्ते की गाठो से सिल रही हूँ दुश्मनी भी प्यार को बस बढाएं जा रही है इसलिए कायरों सा पकड़ को मजबूत कर रही हूँ अब कुछ करूँ भी तो खामखा होगा है ना जैसे पानी पर पानी लिखना यूँ आसान तो ना होगा |

हस्ती💜💙

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   बैठ मेरे ज़रा करीब तेरी हस्ती लिख रहा हूँ ,कल तक तेरे पास होते हुए भी आंखें मुंदी हुए थी, आज तुझे रफिक़ लिख रहा हूँ | गले में हार नहीं, बाहों में बाहें डाली थी मैंने, मृगतृष्णा सी मेरे लिए वो मतवाली बातें थी | हथेली हूँ मैं पर हथेलियां मेरी तुझे ढूंढती है, बस लगता है जैसे आज भी कोई स्पर्श छुपके से मेरा  लेती है |  तेरी तस्वीरों की खदानें, मेरे लिए दुनिया से बेगानी बनी, रुपरेखा तेरे लिए आम होगी, पर मेरे जी को छूने वाली सजी | तू कभी कुछ कह ना सका, जाना तेरा सब बोल गया, मैं चीखी- चिल्लाई, पर ओरो से तूने भी मुंह मुझसे फेर लिया | लब्ज़ तेरे ही पाक थे, नियत का खुला परचा था, एक दिन बनाने के लिए, पूरे साल को दिया तूने बेहीसाब  खर्चा था | जादूगर था वक्त का तू, या मेरे वक्त को तेरी आदत थी, समय से पहले ये निगाहें, घड़ी की टिक-टिक पर टिक जाती थी | दूसरों के लिए अजीब, पर मुझे लगता प्यार था, ना जाने क्या देखा मैंने उसमें, जो दूसरों को तुझे में ना दिख पाता था |  उसके अधूरे किस्सों की अनजानी हिस्सेदार रही हूँ, आंखें भरी रहती थीउसकी, मैं देखती हर बार उसको रही हूँ | लोगों का जमघट रहता, बड़ी यारी- दिल

Me 🌼🌵

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  I met to myself when he recalled me who I am?  The devil inside me playing with the human pam  Never judge the trauma nor the anxiety attacks Holding them up even somehow very tightly World might be unfair to all but not to me in my view Taken every step slightly to reach the sorrow end  Smile is always the hidden treasure living inside me  Keeping me stand still in the upside- downside hills Witnessed myself in every age, every field, every way Feeling guilty as I hadn't the patience residing thoroughly Life spend out always like a ferocious tigress  But now in a cage life becoming like a hectic mess Waiting for an initiation to lead on track of succession Otherwise depression is an easy way to move on detention The above following statement don't know how much true  Might be just comparatively escaping the reality from grope Most likely I behave as a negative vibrato person As nothing until now positive had happened Dreams are broken up but hopes are individually high Looki

बारिश बड़ी जोर है...... ⛈️☔

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  बस एक छतरी लगा दे छत मेरी कमजोर है गरीबी का एहसास देगी दिल जो मेरा कमजोर है बारिश बड़ी जोर है......  इन बूंदों का दिवाना था अब बेगाना हूँ तो अच्छा है यहाँ- वहाँ सब हरा-भरा पर अंदर ना भीग रहा छोर है बारिश बड़ी जोर है...........  रंग नही है इसका कोई मैं भी बेरंग दुनिया का बातें कई हो सकती है पर शोर का ना ओर है बारिश बड़ी जोर है.....  जैसे कोई संगीत हो पर धुन- ताले गायब है बिजली भी गई यहाँ सिर्फ चांद की चकोर है बारिश बड़ी जोर है......  ठंडी का एहसास इतना गरम प्याली हमें चाहिए आंखों में दृश्य तो यादे पनपता रहता है बारिश बड़ी जोर है.....  बस एक छतरी लगा दे, क्योंकि बारिश बड़ी जोर है |

या-अबरनी 👻👻

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 मोहब्बत से नफरत नही है मुझे मोहब्बत करने वाले से नफरत हो रखीं है | आज भी कोई मोहब्बत का नाम ले तो सूरत मुझे उस ही कि याद हो गई है | जान-ए-अदा थे हूर कहानियों की हमारे राजे-ए-दिल को शिकस्त कर नसीम बना गए हैं | अकेले ही रह गए हम खुद इतना खुद में कि अपना शिखर तेरे आगे झुका पड़े है | सवालों की रंजिश यु बुनि है तूने नवाजिश मेरी परदनुमा कही खो गई | शायद जबरन कतरा- कतरा जोडा था मैंने लिहाज की सीमा काफिला हमारा पार कर गई | इस बेजान नफस का तदबीर तो बता आखिरी पल जियु या खो जाने का रास्ता चुनूँ | आशना, दिवानगी जैसे सारे फसाने थे नींद ऐसी टूटी की तबयत खैरियत हो गई | रिंद बना बैठा था तेरी चाहत का यूँ पर तब भी पाक इरादा हुआ करता था मेरा | ऐब था मुझे की सिर्फ  मैं तेरी हूँ और रहूँगी काश बताया होता कि तू मेरा जहाँ बन गया | कही अंदर आस के किनारे अभी भी है पर यास तो बस खाख-खार के लिए बनी हैं | मेरे दहर  का मेहर-ओ-मह यूँ करीने सा था तू रैना तो बस अलफ़ाजो को  तर्ज़ दिया करती थी | तेरा छूना जैसे कल कि ही बात हो अब नुकसान  जो हुआ बस इसका अफसोस बहुत हुआ है | कैफियत मेरी भला क्या दिल  दुखेगी तेरा तक्काबुर हू

शेष🤔🤔

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 अपने आपे में रह महलों के खवाब क्यों देखता है|शेष जिंदगी शेष रहेगीं विशेष होने का सवाल ही नहीं उठता है | यही सुनते हुए मेरा जहां आज भी बस अधूरा ही है |कल्पना मेरी कल्पना रहेगी या जैसे इसकी भी कोई मजबूरी है | यादों का पिटारा खोलूं तो पूरा दरबार है| वर्तमान तो वर्तमान ही रहेगा क्योंकि इसका काम ही बन ना खलिस्तान है | अदा अदायगी मेरे सफर का हिस्सा नहीं रहे हैं| पर अपने तो अपने रहेगें उनके लिए गेरो सा खिलखिलाना पड़ता है | पीछे मुड़कर देखने का तो अब वक्त भी नहीं है| जरूरत अब तो जरूरत रहेगी समय जो निकल गया बहुत है | अब तो अपनी किस्मत का खेल देखते रहते है| जो अफसोस है बहुत अफसोस रहेगा ना जाने गलतियां कि ही ढेर है |

सफर🙂🙃

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  राह-ए-जिंदगी गुमनाम सी, नाम के सफर का पता पूछ रही | जैसे चिट्ठी कही खो गई हो,और तरसती निगाहें राह तकती हुई | मुसाफ़िर था अब स्थायी हो गया,परिवर्तन का चौक अबतक न बना | वक्त का बना हूँ करजदार, इसी जिंदगी में सूत समेत चुकाना पडेगा उधार | काविश की सीढ़ियों पर चढा, पर इम्तिहान ने तो बस नीचे का ही रस्ता दिखाया | ये लंबा कठिन सफर अकेले का नहीं था,इसलिए चेहरे में कैद मुस्कराहटें अभी बाकी है | सफर में चोटें जो इतनी खाई कि अब लड़खडाने ने संभलना खुद ही सिखाया |

अनजान ही सही है 😑🤫

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  अग्यार बना बैठा यहाँ सबसे जाने अनजाने चहरे पढ़ रहा हूँ | मुखोटो के पीछे छुपी है कहानी दिलचस्प है फिर भी अनदेखा कर रहा हूँ | बूरा बनने का खौफ़ नहीं है मुझे पर अपनी अच्छाई से थक रहा हूँ | दुश्मन दोस्त बना हुआ है आजकल तो दोस्ती से भी ज़रा डर रहा हूँ | दूसरो का वक्त बेवक्त जरूरी हुआ खुद के रास्ते का काटा बन रहा हूँ | नियत साफ़ पर किस्मत खराब है दोषियों का दोषी बनने से बच रहा हूँ | कई सच झूठ बना कर दफनाएं है उनकी पोटली रस्सी से कस रहा हूँ | मैं भी इन मुखोटो का हिस्सा था  पर जिदंगी की चोट से सिख रहा हूँ | अग्यार बना बैठा यहाँ सबसे जाने अनजाने चहरे पढ़ रहा हूँ |

फुर्क़त 🥺🥺

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  क़ासिद मेरा पेगाम ले जा तबाही, तोहमत, तशरीह नहीं,  बस कोरा कागज़ उसके नाम ले जा | सुकून नहीं तो क्या हुआ,  बस दोस्ती का फरमान ले जा | तुझसे महरूम रह कर भी तेरी थी,  पर वक्त को हो रही शायद ज़रा देरी थी | मैं खुद में इतना खो गई कि ,  तेरी भी हु में इस मोह से बाहर हो गई | गलतियों के किस्से मेरे हजार है,  पर तूने मुझे माफ किया हर बार है | कोई कुचा ना रहा मेरा सबुत,  विश्वास था ना कोई झूठ | शिकायतें बिलकुल नही है तुझसे,  पर दिल में गुस्सा भरा तमाम है | आज हुआ तू पूरा अनजान,  कल तक तेरे होने से था अभिमान| दुरियोँ ने तो फिर भी समझोता किया ,  पता नहीं मैंने ही क्यों कुछ ना किया | जितनी खुशी से जीवन का हिस्सा बना,  खौफ का आईना तुने मुझमें उतना ही पाया| वक्त से हमेशा मेरी कोई लडाई रही ,  जो चीज  मुझे पसंद आई मेरी कभी न बनी| अब खुश रहूँ या दुखी कशमकश है ,  कसमें हजार जो टूटी इसका तो गम है| खयालों की दुनिया हमारी बून रही थीं,  खुबसूरती से चीजे चुन रही थी|  इख़्तियाम नहीं आगाज़ हुआ है,  मेरा अकेलापन आज मुझसे रुबरु हुआ है| मुसलसल ये कहानी चली है ,  मुख्तार है इतनी याद मुझे हो गई है| निशानी तो नहीं

बाप... या... बीटिया 😢

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आज किस कटघरे में खड़ा हूँ एक तरफ बीटिया की शादी दूसरी तरफ बाप के बोझ से दबा हूँ | बीटिया जोडे में तैयार बैठी बाप दम तोड़ रहा है मैं बस अशक रोके सह रहा हूँ | पैसो की किलत का क्या गरीबी का मैं शिकार हुआ हूँ  ऐसी किसमत के लिए इश्वर को कोस रहा हूँ | एक कि जिदंगी का अध्याय तो दूसरे का अंत वक्त मैं बीच में खड़ा पन्ने खोल रहा हूँ | प्यार मैंने हमेशा दिया परवाह का भी हिस्सेदार रहा हूँ पीढ़ियों की गाथाएँ जैसे रच रहा हूँ | मैं मजबूर लाचार इंसान पिता या बेटा बनू अभी इस असमंजस में सोच रहा हूँ | ना जाने किस कटघरे में खड़ा हूँ............ 

बीती बातें 🤡

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  अधूरी बातो से अच्छा बाते खत्म की जाए | खामोशीयाँ गुमराह कर वक्त जाया करेगी | क्यो ना डट कर सामना  किया जाए | शायद रिश्ते कमजोर हो पर गाठे जख्म देगी | आसूं  तू तो छुपा  लेगा पर  दिल मेरा कमजोर है कहीं ना कहीं  ये  दम तोड़ देगी| मै कुछ  बेपरवाह  हो गई पर  इसमें दोष तेरा तो नहीं | मैंने खुद ही तुझे अपनाया पर दोष मेरा भी तो नहीं | आज तू सही मैं गलत ये चर्चा पूरी व्यर्थ है बस फासलो का ही किसा सच है | कुछ गिला शिक़वा जैसा नहीं बस आज भी तेरा एतबार है | जिंदगी का अन्त नहीं बस ये शुरूआत है |

पसंदीदा

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यूं तो शौक नहीं मुझे़ किसी चीज का पर तुमको अच्छा लगता है बस इसलिए मेरा सजने- संवरने का मन करता है... और वो पीला रंग कुछ खास पसंद नहीं मुझे पर तुम कहते हो मेरे ऊपर खिलता है  बस इसलिए पहन लिया करती हूं... आंखों में सुरमा खूब भाता है मुझे पर तुम्हें सादगी भरी नज़रें पसंद है मेरी  इसलिए आंखों में सूनापन रखती हूं....  मेरा कभी - कभी  सर पर दुपट्टा रखना  तुम्हारे चेहरे पर खुशी ले आता है बस उसी चमक को देखने के खातिर ये अंदाज़ भी इख़्तियार कर लेती हूं...                                         -Rabiya

उलझी सी दास्तां

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 तुम सब्र देखना चाहते हो, मैं हुनर दिखाना चाहती हूँ तुम हर वक़्त मेरा इम्तेहान चाहते हो , और मेरे पास वक़्त की कमी है ये बताना चाहती हूँ.... तुम मेरा विश्वास मापना चाहते हो , मैं तुम्हे हक़ीक़त बना के दिखाना चाहती हूँ तुम मेरे सपनों का सौदा करना चाहते हो , तो फ़िर मैं तुम्हें उनकी क़ीमत बताना चाहती हूँ.......                                                       -rabiya