बैठ मेरे ज़रा करीब तेरी हस्ती लिख रहा हूँ ,कल तक तेरे पास होते हुए भी आंखें मुंदी हुए थी, आज तुझे रफिक़ लिख रहा हूँ | गले में हार नहीं, बाहों में बाहें डाली थी मैंने, मृगतृष्णा सी मेरे लिए वो मतवाली बातें थी | हथेली हूँ मैं पर हथेलियां मेरी तुझे ढूंढती है, बस लगता है जैसे आज भी कोई स्पर्श छुपके से मेरा लेती है | तेरी तस्वीरों की खदानें, मेरे लिए दुनिया से बेगानी बनी, रुपरेखा तेरे लिए आम होगी, पर मेरे जी को छूने वाली सजी | तू कभी कुछ कह ना सका, जाना तेरा सब बोल गया, मैं चीखी- चिल्लाई, पर ओरो से तूने भी मुंह मुझसे फेर लिया | लब्ज़ तेरे ही पाक थे, नियत का खुला परचा था, एक दिन बनाने के लिए, पूरे साल को दिया तूने बेहीसाब खर्चा था | जादूगर था वक्त का तू, या मेरे वक्त को तेरी आदत थी, समय से पहले ये निगाहें, घड़ी की टिक-टिक पर टिक जाती थी | दूसरों के लिए अजीब, पर मुझे लगता प्यार था, ना जाने क्या देखा मैंने उसमें, जो दूसरों को तुझे में ना दिख पाता था | उसके अधूरे किस्सों की अनजानी हिस्सेदार रही हूँ, आंखें भरी रहती थीउसकी, मैं देखती हर बार उसको रही हूँ | लोगों...